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संदेश

#ये कैसी बहस

#ये कैसी बहस आज ताज को लेकर के क्यों एक बहस छिड़ी है बुद्धि  प्रदर्शन  अपने  की , क्यों होड़ मची है। भूख,बीमारी और गरीबी के मुद्दे क्या कम हैं, गौर से देखो भूख से ,मासूमों की आँखें नम हैं। छोड़ के मुख्ये मुद्दों को ,ये  भटक रहे हैं इनकी उदासी के कारण,कार्य मुख्य अटक रहे हैं। सीमा पर होती हलचल से,ये बेखबर रहते हैं, विकास की राह में पड़े पत्थर,इनको ना दिखते है। चटखारे लेकर सुनते सारे,और लार गटकते मुँह में, टांग अड़ाते फटी चादर में,सच देख ना पाते क्यों हैं। मुस्कुराता ताज खड़ा,लो आज जुबानी जंग छिड़ी , सांस्कृतिक-संगम की बातें,धुंधली क्यों है आज पड़ी। कब्रिस्तान बताने वाले, खुद समाधि पूजने जाते हैं, महलों के नीचे दबे श्रमिकों की,कुर्बानी भूले जाते हैं। शहीदों की चिताओं पर, ये स्वर्णिम भारत महल खड़ा चहुँ ओर इस स्वतंत्र देश में ,रक्त उनका बिखरा पड़ा । #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

हमारा राजस्थान

#हमारा राजस्थान आज क्यों शीतल मरुभूमि में,      प्रचंड धूप है बरस रही। गौरव से गर्विलों  की  क्यों, आखों में अग्नि दहक रही आज हाय फिर खिलजी की,     नजर पड़ी मरुभूमि पर, आज कहो क्यों भीड़ खड़ी है, हर गलियों और चौराहों पर। उबल रहा है रक्त सभी का, मान की कसमें भी उठाई हैं पर यों तो ना अपमान करो , वो बेटी भी नहीं पराई है। संवाद से हो हर कार्य कुशल, बेहतर हमसे ये जाने कौन, झुका पेड़ ही  फल पाता ये, गांधी भी कहते रह मौन। जौहर का व्रत भी याद हमें मीरा के पद भी ना भूले, फिर क्यों मेरे भ्राता बोलो क्या मर्यादा अपनी यूँ भूलें। धोरों की धरती की महिमा, ना भूलेगा कभी ये हिंदुस्तान, माणक-मुकुट चित्तौड़ हमेशा बढ़ाता रहेगा इसकी  शान। #सुनीता बिश्नोलिया

#सीता की शक्ति

# सीता की शक्ति उस तृण की ताकत सिद्ध तो कर, उठ.. उठ.! सीता अब युद्ध तो कर। तब गिद्ध ने रक्षण की सोची , अब गिद्ध ने देह तेरी नोची।                       हिम्मत ना अपनी हार के चल,                       उस पापी का प्रतिकार तो कर,                        हे सीता अब लाचार ना  बन,                        अपने शत्रु का संहार तू कर।   लंका में तब एक रावण था,   हर तरफ आज वो दुष्ट बसा।   उस तिनके को हथियार बना,   ना डर सीता तलवार उठा।                        गर फिर आए वो बन भिक्षु,                        नख से नोचन लेना चक्षु।                        नाजुक ना इसबार तू बन,                        वध उसका कर तलवार को चुन। नारी का शोषण करतों का भूतल से अब व्यभिचार मिटा, जन उद्धार के खातिर  दुष्टों का उठ..उठ सीता तू पाप मिटा।                  कुदृष्टि डालते रावण को अपना,                  शक्ति स्वरूपा रूप दिखा।                                      कोमल ना अब सीता है,                   नर को ये अहसास दिला। तब हनुमान ने मात कहा तुझको, तू बोल आज हनुमान कहाँ। लक्ष्मण रेखा की लाज

ताज और यमुना का दर्द

               ताज और यमुना का दर्द बेबस  बूढी अबला सी,बीमार पड़ी यमुना देखी संकोच से सिमटी नारी सी,पीड़ा से भरी यमुना देखी, कीचड़ से सनी  साड़ी पहने,दुर्गंध भरी यमुना  देखी अपनों के दिए घावों को लिए,घायल हो चली यमुना देखी, ताज सजाए सिर पर जो,पानी को तरसती यमुना देखी गोदी के हर इक पंछी पर,ममता को लुटाती यमुना देखी, ताज की सुन्दरता उससे,इस बात से वो अंजान दिखी,          अस्तित्व की लड़ाई लड़ते हुए,चुपचाप पड़ी यमुना देखी, उधर रो रही  है यमुना  और इधर सिसकता ताज कहता हमसे खतरे में  है ,माँ यमुना की लाज, खुद के मट मैले  तन से ,है दाग हटाता  ताज गर्व से फिर भी शीश उठाए, खड़ा शान से ताज। आएगा फिर कोई शाहजहाँ करके बुलन्द आवाज फिर  रूप हमारा  लोटाएगा, हमसे कहता है ये ताज,। सुनीता बिश्नोलिया

भूख

#भूख कोई नाम का भूखा जग में,                  और कोई दाम का भूखा, आत्म-प्रशंसा की भूख किसी को,                  और कोई है पद का भूखा। इतना कुछ खा कर भी उनकी,                   जिह्वा का बोल है रुखा। पेट की ज्वाल भी तड़पाती,                  और सबको नाच नचाती। भूख ना देखे छप्पन भोग,                   भूख तो खुद ही बड़ा है रोग। अंतड़ियों से आह निकलती,                  हड्डी भी देह से बाहर निकलती। भूख के मारे वो बेचारे                    ले लिया जमाने से है बैर, सूखी रोटी पर टूट पड़े,                 समझ उसे व्यंजन का ढेर। भूख ना सही गलत पहचाने,               बस पेट की ज्वाल को चले बुझाने। भूखा बनाती चोर-लुटेरा,               ये कारज करता कोई हाय बेचारा। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

युद्ध की बातें करने वालो

#युद्ध की बातें करने वालो युद्ध की बातें  करने  वालो  , घर  अपने  में  रहने वालो , सीमा  पर  जाकर  तो  देखो , जीवन  उनका  जीकर  देखो .। अपने  घर को छोडा  है ,हर मुशकिल  का रुख  मोडा  है , देश की  आन  बचाने  को ,अपनों के सपने को पीछे छोड़ा है। दिन रात खड़े रहते हैं,जो अपने सीनों को ताने, भारत भू की रक्षा में ,हर सुख को बौना माने। ओ युद्ध की बातें करने वालो,सुख का जीवन जीने वालो........ युद्ध से हमें  बचाने को ,रातों को पहरा देते हैं, अमन का पाठ पढ़ाते सैनिक,खुद ही पत्थर खाते हैं। लड़ जाते हो तुम इक दूजे से,हर सुख को ही पा लेने को सीने पे गोली खाने को, तैयार है ये मर जाने को । दुश्मन की नापाक  हरकतें ,हम से ज्यादा ये जानें, आतंकी के हर हाव भाव को वीर हमारे पहचानें। ओ युद्ध की बातें करने वालो,रातों को सुख से सोने वालो....... हम इन को क्या फ़र्ज सिखाते,क्यों युद्ध हेतु उकसाते हैं ये अपनी मर्जी से जाते हैं,दुश्मन को सबक सिखाते हैं। द्दुश्मन के गलत इरादों को ,बिल्कुल भी सह ना पातेे हैं पुख्ता इलाज करने को घर से,सिर दुश्मन का ले आते हैं। युद्ध-युद्ध ना नाम रटो तुम,शांति का आ

अहंकार

#अहंकार लोभ-मोह-मद-अहंकार में डूब रहा इंसान, तृष्णा की तृप्ति के  हेतु करता धरती को शमशान । स्वर्ण महल में रहते सारे अहंकार के मारे, अहंकार के कारण इनके गूंज रहे जयकारे। अपने अहम् में जीते हैं सब खुद को कहें खुदा रे पर अहंकार से कोई  न जीता बड़े-बड़े भी हारे। क्या मिट्टी की काया को कोई संग में ले जा पाया, सृष्टि के नियम के आगे  'दंभ ' रावण का भी ना टिक पाया। सागर की उत्ताल-तरंगे, अहं में गरज रहीं थीं, राम के क्रोध के कारण अब चरणों में आन गिरी थीं। भूल गया जमीं अपनी को अहंकार  में पड़कर, अहंकार के कारण फिर वो आन गिरा जमीं पर । धन  की गांठ  न संग जाएगी सुन ओ!अहं के मारे झूठी  शान में बजते रहते थोथे चने बिचारे। त्याग तू मन जा मैल समझ जा ओ!मानुष दुखियारे, अहंकार से कोई ना जीता बड़े-बड़े भी  हारे। #सुनीता बिश्नोलिया

छोटू

#छोटू 'छोटू...चाय नहीं बनी बेटा'..'अभी लाया' मास्टर जी कहते हुए छोटू चाय का कप लेकर आता है और मास्टर जी को पकड़ाता है। चाय पीते हुए मास्टर जी कहते हैं..छोटू जल्दी चल देर हो जाएगी..मोहन भेज इसे ..मास्टरजी मैंने कहाँ रोका है..मैंने तो इसे पाँच बजे ही जगा कर पढने बिठा दिया था...और बाद में होटल के काम में मदद  की है इसने ...अब देखिए ये तैयार है ।छोटू बस्ता लेकर आ जाता है...चलें मास्टर जी..नहीं तो मोहन भैया को कोई काम याद आ जाएगा..।मास्टर जी ने छोटू का कान पकड़ते हुए कहा...नहीं बेटा मेरा मोहन ऐसा नहीं है क्योकि ये भी कभी छोटू था ...बड़ा तो आज हुआ है..मन से बड़ा,ये अपनी होटल पर हर दूसरे साल एक छोटू को ले आता  है...ये उसे पढ़ाता-लिखाता है..जैसे तुझे। मास्टर जी मुझे बहुत ख़ुशी होती है...जब मेरा हर छोटू यहाँ काम के साथ पढ़-लिख कर बड़ा होता है...पता है मास्टर जी मुझ अनाथ के कितने भाई हैं..अब....सब मोहन भईया-मोहन भईया कहते रहते हैं,किसी भी होटल का छोटू आज तक बड़ा नहीं हुआ एक जाता है दूसरा आ जाता है पर देखो मैं बड़ा हो गया मेरा हर छोटू यहीं पढ़ कर बड़ा भी होता है पाँव पर भी खड़ा होता है ।मेर

भिक्षा

#भिक्षा (आस-बिखरे सत्य से समेटे कुछ आखर..) विनय की माँ फेरों से ठीक पहले विनय और उसके पिताजी पर चिल्लाती है.. मैंने  आपसे पहले ही कहा था कि ये लड़की मेरे बेटे के लिए ठीक नहीं...इसका चरित्र..इतना सुनते ही राधा बहन अपनी आँखों से आँसू पोंछते हुए बोली...ले जाओ बारात वापस लेकिन..अब अगर एक शब्द भी मेरी बेटी के खिलाफ निकाला तो तुम लोगों की खैर नहीं...तुम्हारी माँगे पूरी नहीं करेंगे तो तुम मेरी बेटी पर कलंक लगाओगे...मुझे किसी बात का डर नहीं जाओ जहाँ भी मेरी बेटी की तस्वीर छापनी है छपवा दो...और सुमन के पिताजी ने कहा..मुझे अपनी सुमन पर विश्वास है..किसी और के विश्वास की जरूरत नहीं....तुम जैसे लालची लोगों से मुझे अपनी बेटी के लिए चरित्र प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं...जाओ वरना अब पुलिस ही तुम लोगों  को ले जाएगी। आँखों में आँसू लिए ..माता-पिता के डर से चुपचाप बैठी सुमन को भी माँ की बातों से  जोश आ गया और वो भी खड़ी होकर बोलने लगी...विनय चले जाओ यहाँ से..मुझसे गलती हुई जो मैंने तुम से प्यार किया....मेरे माता-पिता ना चाहते हुए भी इस रिश्ते के लिए तैयार हुए....और तुम लोग क्या निकले...लालची- लोभी भि

मंजिल

#मंजिल मंजिल को पाने को राही,ठोकर तो खानी ही होगी, कठिन मार्ग है पहले खुद को,राहें तो बनानी ही होगी। मुश्किल देख राह से मुड़ना,है बहुत बड़ी कमजोरी, मुश्किल को ठोकर मार हटाना,काम नहीं है भारी। बाधाओं को बना कभी मत,अपनी राह का रोड़ा, मानव ने अपनी शक्ति से,है ह्रदय अचल का तोड़ा। खुद से चलकर मंजिल ना कभी, दर पे तेरे आएगी, राह सुझा खुद तुझको मंजिल,दे आवाज बुलाएगी। प्यास तेरी को तृप्त है करने,कूप  कभी ना आएगा, आलस त्याग निकल राहों पर,निश्चय मंजिल पाएगा। अर्जुन ने लक्ष्य को पाने को,ना अपना ध्यान हटाया था, अपने विवेक से अर्जुन ने तब, लक्ष्य अपना पाया था। यों अंतर्द्वंद से ना जूझो,खुद पर विश्वास अटल रखो, खुद चूमेगी मंजिल कदम तेरे,धैर्य जरा सा तुम रखो। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर (राजस्थान)

मासूमों की पीड़ा

#आज भी वो बच्चा सोचा था आज कुछ शांत होकर चाय पी जाएगी, ना भागम-भाग ही होगी, ना काम की चिंता ही सताएगी। सुबह के पाँच बचे हैं, अखबार का इंतजार और हाथ में चाय का प्याला, सुबह-सुबह फिर वो दृश्य, मेरी सुबह को फीकी कर गया, अधखुली आँखों में दर्द भर गया। आज फिर वो नन्हा कूड़े में हाथ मार रहा है, कचरा बीनते बीनते ही शायद अपना बचपन संवार रहा  है। अल सुबह ह्रदय पे घाव गहरा दे गया वो कचरा उठाता बालक, समाज के कटु सत्य से परिचय करा गया। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर