पढ़ें- वसंत - दोहे वसंत का सौंदर्य वसंत ऋतु "अपनी आभा से धरती को करने को गुलजार सुमन धरा पर खिले संग ले, सतरंगी संसार, पहन हरित वसन बसंत ने,जीवन दिया धरा को मंद पवन संग उड़ -उड़कर,भर देती घर द्वार ।।" दोहे - वसंत कहीं गर्मी में झुलसते मानव तो कहीं हिमाच्छादित रातों में ठिठुरते जन पर धन्य हैं हम जिन्होंने जन्म लिया भारत विशाल में। इसकी स्वर्ग सी धरती पर सदा चक्र गतिमान रहता है षड्ऋतुओं का। ग्रीष्म, वर्षा,शरद, हेमंत,शिशिर और वसंत अर्थात विभिन्न रूपों और प्रकृति की क्रीड़ा स्थली हमारा देश भारत। प्रकृति के रूप और सौन्दर्य का शृंगार करती है ये छः ऋतुएँ। हर ऋतु की अपनी विशेषता और अपना महत्त्व, जहाँ ग्रीष्म की गर्मी से तप्त भूमि को सींचकर शीतल करती है वर्षा और वर्षा के प्रभाव से शीतल भूमि पर ठिठुरन पैदा करती है शरद।प्रकृति द्वारा शिशिर पर कुर्बान अपने हर तरुवर के पात पुनः आते हैं शिशिर की विदाई के साथ ऋतु वसंत में अर्थात् शीत ऋतु में पतझड़ के कारण अपना सौन्दर्य खोकर ठूंठ हो चुके पेड़ और लताएँ मुस्कुर
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