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संदेश

अँधेरी रात

ये कविता उस समय लिखी थी जब जयपुर में एक तीन साल की बालिका दरिंदगी का शिकार हुई .. फूल के आँचल से लिपटी,सो रही थी वो कली ना मचा था शोर पर,थी वहाँ बिजली गिरी। #उपवन में जंगल से था आया,एक ऐसा जानवर, नन्ही कली को देख,उसके मन में आया पाप भर। तोड़ उसको शाख से,अलग उसने कर दिया, अधखिले उस पुष्प को,रौंद कर के रख गया। फूल की जब नींद टूटी,थी कली ना पास में, मन डर गया उस पुष्प का,बस.. बुरे अहसास में। बदहवासी में वो दौड़ा,आँख में  थी अश्रु धार हाल उसका देख के ,,करने लगी सहसा चित्कार। वज्र टूटा हाय! माँ पे , भगवन...!ये क्या हो गया ? ये घिनौना कृत्य बोलो ,कौन ...? कर   गया । अंश की हालत को देखा,हो गई ममता निढाल. फट गया उसका ह्रदय,आँखों में उसके कई सवाल? सिर पे छत ना होने की ,क्या इतनी घिनौनी है सजा, गर हाथ में होता हमारे ,हम लेते महलों का मजा। नर-भेड़िया वो आज शायद!,पास ही में है खड़ा, सब संग वो भी भीड़ में ,हक़ के लिए मेरे लड़ा। होड़ सबमें  क्यों मची है ,देखने मेरी  दशा सहमी हुई और कांपती माँ, हो गई है परवशा। जलती  हुई उन आँखों से ,कई प्रश्न उसने दाग कर, सबको निरुत्तर कर  दिया,एक

#चुनावी वादे

#चुनावी वादे घोषणाओं और झूठे वादों का  इंद्रजाल लेकर चुनावी मंच पर आचुके हैं कई बड़े- बड़े कलाकार। कुछ कलाकारों के लिए तो ये कर्म क्षेत्र  है किन्तु कुछ तो अपने लोभ के कारण इस मंच को धनोपार्जन का सुगम मंच समझ यहाँ अपनी बुद्धि को झोंक देते हैं। यहीं पर शुरू होता है उनका चालों पर आधारित युद्ध अर्थात भोली भाली जनता की भावनाओं से खेलने का दौर। जब हम स्वयं को एक लोकतांत्रिक देश मानते हैं तो हमारे राजनेता जनता पर धर्म-जाति आदि के नाम पर क्यों अपनी और आकर्षित करने का प्रयास करते हैं..इस तरह वो उन्हें देश के नाम पर जोड़ते नहीं वरन देश की एकता पर ही कुठाराघात करते हैं । जो व्यक्ति स्वयं किसी वर्ग विशेष हेतु विशेष सुविधाओं की भीख मांगता हुआ इस मंच पर आता है वो क्या वास्तव में जनकल्याण की भावना रखता होगा..नहीं बिल्कुल नहीं.. वो मात्र किसी वर्ग-विशेष के भले की चाह से आता है इसमें जनसाधारण के हित का का रत्ती भर -भाव भी नजर नहीं आता। कुछ तथाकथित नेताओं के अटल किन्तु कुटिल इरादे चुनाव जीतने हेतु इस प्रकार का दांव खेलते हैं कि जनकल्याण करते व्यक्ति भी उसकी चाल में फँस कर वो मार्ग छोड़कर मात्र अपनी कुर

गुलामी

#गुलामी सुधा ने ससुराल में पहला कदम ही रखा था कि एक आवाज आई...बिमला माना कि तेरी बहू बहुत सुंदर है...पढ़ी-लिखी है,नौकरी भी करती है।पर इसमें संस्कारों की तो कमी है इसने घूंघट ही नहीं निकाल रखा।अरे जब पल्ला सिर पर लिया है तो क्या पल्ले को थोड़ा आगे खिसका लेती तो पल्ला घिस जाता..भाई पढ़ी -लिखी तो हमारी बहू भी है मजाल है,पल्लू सरक जाए। विमला ने जेठानी को कहा भाभी जी वो इसे मैंने ही कहा था घूंघट निकालने की जरूरत नहीं..। इतना सुनते ही विमला की जेठानी बोली...हे राम ! तू तो पहले ही हमारे खानदान की परम्पराओं को तोड़ती रहती है..औरतों की लाज-शरम बची रहे उन परम्पराओं का तो मान रख ।सुधा चुपचाप ये सब देख रही थी..उसका मन किया कि वो कुछ बोले । अमन ने भी उसे सब-कुछ चुपचाप देखने का इशारा किया। जेठानी का बड़बड़ाना जब बंद नहीं हुआ तो...विमला बोली। दीदी मैंने भी जाने अनजाने और आप लोगों के झूठे मान का मान रखते हुए सारी सही-गलत परम्पराओं को निभाने ने की कोशिश की ,लेकिन मैं अपनी बहू को इन परम्पराओं की दासी बनाकर इनकी # गुलामी करने को मजबूर नहीं करुँगी।ये जैसी है वैसी ही रहेगी...इसे जीवन में बहुत कुछ पाना है..इन प

कोहरा

#कोहरा कंप-कंपाती  सर्दी में  वो,       वो सुबहा सजीली आई , कोहरे की साड़ी बाला ने,             अंधियारे खेतों पर लहराई । हर डाली पर तितली सा कोहरा,              ओस की तरह छिटकता, उस 'आँचल' के स्पर्श से पादप,              'अलसा ' अँगड़ाई लेता।                 कोहरे से लिपटे खेतों में ,            कोई मस्त मगन हो गाता। देख के  बाली गेहूं की ,           खुशियों से वो भर जाता ।                  सर्दी और कोहरे की सुबहा,          जोश ह्रदय में भरती, साम्राज्य धुंध का फ़ैल रहा,           फसलें नव-जीवन पाती। #सुनीता बिश्नोलिया

#विडम्बना

जयपुर से दिल्ली की यात्रा..दिल्ली में स्वागत किया स्वच्छता अभियान को मुँह चिढ़ाते दृश्य ने...दिल्ली देश का दिल..राजधानी,मन सन्न रह गया गंदगी के ढेर देख कर। हादसों को निमन्त्रण देता बड़ा सा टूटा हुआ वृक्ष...झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने वाले लोगों के इधर उधर  भागते बच्चे..रेलवे ट्रेक के पास सूखते ,हवा से इधर-उधर लहराते कपड़े उफ़ ! क्या ये है स्वच्छ भारत की तस्वीर...ये तो स्वच्छता की ओर एक कदम भी बढ़ा हुआ नहीं लग रहा...वही..गरीब वही गरीबी.. कहाँ रह गई सम्पन्नता ..किसके हिस्से आई है दौलत..क्या इनके हिस्से यही रेलवे ट्रेक हैं...यहीं नित्य क्रियाओं से निवृति....गंदगी फ़ैलाने का कारण...स्वयं के लिए समस्याएँ..स्वयं के परिवार को सदेव बुरी नजरों से बचाने का प्रयास करते लोग..और इनके हित में कार्य करने का दावा करने वाले ..शायद भोग और ऊँचे बोल- बोलकर ही सुख पाते हैं। कहते हैं स्वच्छता अभियान जोरों-शोरों से चल रहा है..हाँ अवश्य चल रहा है, किन्तु कागजों मे कुछ लोगों ने तो जैसे ठान लिया है ,स्वच्छता अभियान पर ही झाड़ू फेरना है..यहाँ आम जन सहभागिता भी.दिखाई नहीं देती कि सरकार का सहयोग करके ही लक्ष्य प्राप्ति हे

# फ़िज़ा

आज फ़िज़ा बदली-बदली,देश की मुझको लगती । पहले सा प्रेम ना यहाँ रहा,कड़वाहट घुली सी दिखती। मुस्कान बिखरते चेहरों के, मन मैले से लगते सम्मुख अमृत बरसाते,क्यों!पीछे से जहर उगलते। आज फ़िज़ाओं में बोलो, क्यों ! काले बादल छाए , रूप मनुज का लेकर क्या?,फिर से कोई 'दानव' आए । तर्क-वितर्क में पड़कर के,हर तरफ ही आँखे जलती, आज फ़िज़ा बदली-बदली ,देश की मुझको लगती। अपने पाँव जमाने को दूजे का पैर पकड़ते, पाकर ऊँचा ओहदा क्यों!उसी को वहाँ गिराते। भाषा ऐसी आज कहो,कुछ लोग हैं क्यों,अपनाते, स्वयं का दामन स्वच्छ रखें,कीचड़ दूजे पर फेंकें। कुर्सी के खेल में पड़कर के,क्यों इतना हैं गिर जाते, सम्मान उसी का ना हरके,परिवार को मध्य ले आते। अनगिनत प्रश्न हैं उमड़ रहे,आँखें उत्तर ना पाती, आज फ़िज़ा बदली-बदली,देश की मुझको लगती। #सुनीता बिश्नोलिया

लोकगीत

#लोकगीत आओ जी ..आओ पावना..पधारो अठे पावणा सौंधी माटी री खुशबू मैं, ढोला-मारू आज बस्या  है... म्हारी धोरण री धरती नै निहारो,प्रीत अठयां री जाँचो.. आओ आज अठे थे आओ...ओ प्यारा पावणा, म्हारा मीरा रा पद गूंज,वान सुणss संत सब झूमss आओ पावना...ओ प्यारा पावना। म्हारै जयपुर रो गढ़ ऊँचो, न दूजो बीकानेर सरीखो ..ओ देखो पावणा.. आओ जी आओ पावणा, ई रा ऊँचा नीचा-टीबा,जाँ मैं सर्पीला सा धोरा, रमोजी आमैं.प्यारा पावणा..पधारो प्यारा पावना, ई री घूमर री घूम मैं घुमो, गढ़ चित्तौड़ पे चढ़ बदल न चूमो..ओ प्यारा पावणा.. पधारो पावणा..आओ जी अठे पावना। फर्ज री खातिर सिर खुद काट लियो क्षत्राणी, जोहरी री आग मैं कूदी,मान बचायो थो क्षत्राणी, बां री पुण्य धरा पर आओ....वां री चिता नै सीस नवावो... आओ जी अठे पावणा...पधारो अठे पावणा.. आओ जी आओ पावना। मोरां बाई रा गीत सुनो जी..कालबेलियां संग नाचो जी ओ..प्यारा पावणा.. पधारो पावणा..आओ जी आओ पावणा. (अपने लोकगीत के माध्यम से राजस्थान के गौरवशाली अतीत और यहाँ के वीर-वीरांगनाओं का यशगान करते हुए यहाँ की विरासत..प्राचीन इमारतों को देखने के लिए पावणों अर्थात मेह

विदाई

#विदाई बाबुल अपनी लाडो को ना,कर देना कभी पराया, विदाई की वेला में ना जाने,क्यों भाव ये मन में आया। चंचल चिड़िया आँगन की, मैं पंख पसार रही हूँ, ना बने कभी पिंजरा 'डोली',इसलिए निहार रही हूँ। माँ की कोख का मोती पिया,तेरे घर में जान सजेगा, निर्मल-स्नेह का सागर अब,मुझे तेरे ही घर में मिलेगा। सौरभ से युक्त खिला 'सुमन' ,बाबुल ने तुमको सौंपा, आज शाख से अलग हो चला,बन कंटक ना देना धोखा। गाँठ बाँध कर स्नेह की,तेरे संग ख़ुशी-ख़ुशी आऊँगी, तुम भी वचन के पक्के रहना,मैं भी हर वचन निभाऊँगी। नीर भरे नयनों में सपने,नव-जीवन के हैं संजोये, भाई भी मेरे कर के विदा,किस और जान हैं खोये। आँखों में ले दर्द के बादल,वो मेरे पास में घूमा करते, कहाँ छिप गए  बदरा वो जो,मस्तक चूमा करते थे। मैं बाबुल के बागों में , बन कोयल थी कूका करती, उन बागों से निकल आज,तेरे संग मैं हूँ डग भरती। बदल गया है वेश मेरा, हाँ..मेरा बदलेगा परिवेश, मुझको भुला ना देना, ओ! मेरे..प्यारे बाबुल के देश। #सुनीता बिश्नोलिया

उगता सूरज

#उगता सूरज ले आशा का संसार सुनहरा, दिनकर ने कर फैलाए, नव जीवन पा करते कलरव ,नभचर भी हैं हर्षाए। उम्मीदों की रश्मि रवि ने, कण-कण पर बरसाई, पाकर स्वर्णिम सूर्य किरण,वसुधा ने ली अंगड़ाई। संदेश विजय का दे सूरज,जन-जन में जीवन भरता, अंधकार को हर 'दिनेश' , सिंदूरी पताका लहराता। अलसाई सी वो उषा भी,खिल उठी परस पा सूरज का खिल उठे पुष्प उपवन के,धड़का दिल भी कलियों का। बाँहे पसार खुशियाँ बरसाता, राहें भी नई दिखाता, आया ले प्रचण्ड तेज, जनमानस में साहस भरता। उदित होते भानु  की किरणें, हरदम हमें जगाएँगी, ह्रदय चीर बाधा का बढ़ तू, बाधाएँ खुद ही हट जाएँगी। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

तेरे द्वार

#तेरे द्वार कौन आया है ये आकर देखिए, इस अजनबी से रिश्ता बनाकर  देखिए । वो उम्मीद भरी आँखों से देख रहा है एक बार तो उस पर प्यार लुटाकर देखिए। एक अबोध नन्हा बालक द्वार तेरे है आया, ना जाएगा रिक्त हाथ वो तुम्हारे  द्वार से, उस मासूम का दृढ़ विश्वास तो देखिए, उस नादान को अब खुद ही आकर देखिए। हालत खुद ही बयां उसका चेहरा कर देगा, प्यार से बोलना तुम्हारा झोली उसकी भर देगा। भीख नहीं वो प्रेम का  निवाला  चाहता है, आँखों में बसे अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर चाहता है। तुम क्यों चार दिवारी के भीतर और वो बाहर रहता है तुम नित नए वस्त्रों से सजते हो और वो नंगा सोता है। क्या मेरे रक्त का रंग तुम से जुदा है उसके सवालों को आके जरा सुलझाइए, कौन आया है ये आकर देख तो देखिए। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

#अधिकारों का हनन

#अधिकारों का हनन आज आपको अधिकारों के, दुरूपयोग की दास्तां बताती हूँ, आँखों देखी मानवता को शर्मसार करती, एक घटना  सुनती हूँ.. एक बड़े अधिकारी  की बेटी,रस्ते से गुजरी उसी रास्ते एक स्कूटी सवार नारी भी निकली, शानदार सरकारी गाड़ी की सवारी, और तिस पर अमीरी की खुमारी, और इधर वो स्कूटीवाली नारी, आपस में टकरा गए, मैडम की आँखों में गुस्से के बादल छा गए, स्कूटी सवार महिला की आँखों में आँसू आ गए, पिता के अधिकारों का जमकर दुपयोग हुआ, कई अफसर आ गए कि छोटी मैडम और कहीं गाड़ी को तो कुछ नहीं हुआ, बिना वजह स्कूटीवाली महिला को बुराभाला सुना गए, हमारी आदत मदद करने और जरा सच के पक्ष में बोलने की है, तो उनके लपेटे में हम भी आ गए। अब तो हम भी असली रंग में आगये, रास्ते पर अधिकार जताने वालों पर छा गए, हमने नुकसान की भरपाई मांगी तो वो मुकर गई, बस यही बात हमें अखर गई, अधिकार मांगने से नहीं,छीनने से मिलता है, बगिया में पुष्प अपने आप नहीं, माली की मेहनत से खिलता है, अपने अधिकारों की बात करनेवाले, ओपना कर्त्तव्य क्यों भूल जाते हैं, अपने लिए लड़नेवाले क्यों औरों का हक़ मारते हैं, अनुचित