ये कविता उस समय लिखी थी जब जयपुर में एक तीन साल की बालिका दरिंदगी का शिकार हुई .. फूल के आँचल से लिपटी,सो रही थी वो कली ना मचा था शोर पर,थी वहाँ बिजली गिरी। #उपवन में जंगल से था आया,एक ऐसा जानवर, नन्ही कली को देख,उसके मन में आया पाप भर। तोड़ उसको शाख से,अलग उसने कर दिया, अधखिले उस पुष्प को,रौंद कर के रख गया। फूल की जब नींद टूटी,थी कली ना पास में, मन डर गया उस पुष्प का,बस.. बुरे अहसास में। बदहवासी में वो दौड़ा,आँख में थी अश्रु धार हाल उसका देख के ,,करने लगी सहसा चित्कार। वज्र टूटा हाय! माँ पे , भगवन...!ये क्या हो गया ? ये घिनौना कृत्य बोलो ,कौन ...? कर गया । अंश की हालत को देखा,हो गई ममता निढाल. फट गया उसका ह्रदय,आँखों में उसके कई सवाल? सिर पे छत ना होने की ,क्या इतनी घिनौनी है सजा, गर हाथ में होता हमारे ,हम लेते महलों का मजा। नर-भेड़िया वो आज शायद!,पास ही में है खड़ा, सब संग वो भी भीड़ में ,हक़ के लिए मेरे लड़ा। होड़ सबमें क्यों मची है ,देखने मेरी दशा सहमी हुई और कांपती माँ, हो गई है परवशा। जलती हुई उन आँखों से ,कई प्रश्न उसने दाग कर, सबको निरुत्तर कर दिया,एक
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