सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

वसुधैव कुटुंबकम्

# वसुधैव कटुम्बकम     (गीत) वसुधा कुटुंब हमारा है और हम हैं वसुधा वासी, मिलजुल कर जो रहें धरती माँ हम पर स्नेह लुटाती। छोटे से परिवार में रहते,हिल-मिल जन क्यों सारे, क्यों लगते हैं कहो वो,एक-दूजे को खुद से प्यारे। अपना छोटा सा ही घर क्यों लगता स्वर्ग से सुंदर, क्यों खुशियों के बजते नित,गान भी घर के अन्दर। वसुधा कुटुंब....... एक दूजे के कष्ट में क्यों हर मुख पर दुःख छा जाता, कहो क्यों एक रूठे तो दूजा ,भाई उसे मनात। वैसे ही माँ वसुधा भी तो,घर है हमारा अपना, अखंड और सुंदर धरती का,सबका ही हो सपना। वसुधा कुटुंब... एक धरा है एक है अंबर,रहते चाहे रहते लोग अनेक, सीमाओं के नाम से बंट,क्यों बढ़ा आज इतना मतभेद। मनुज धरा का हर कहता,वसुधा को अपनी माँ, परिवार एक फिर हुआ स्वत: ही सबकी धरिणी माँ। वसुधा कुटुंब..... रक्त का वर्ण भी हर प्राणी का है होता एक सामान, ना हो कोई तुच्छ नजर में और ना कोई महान। जाति-पाति का भेद मध्य ना आए बंधु-बांधव के, वसुधा को कुटुंब समझ,दुःख बाँचे हर मानव के। वसुधा कुटुंब... म्यान से ना तलवार निकालें, देश-धर्म के नाम पर, प्रणों का उत्सर्ग करें हम ,मानवता

कसूर

कसूर (#मात्रा भार-26) गरीब की गरीबी ही उसका कसूर बन गई, चिथड़ों में लिपटी काया ही नासूर बन गई, घूरती निगाहों से बदन छुपाए तो कैसे, आज फिर कोई उन निगाहों की भेंट चढ़ गया। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

आग से सब कुछ स्वाहा होने के बाद....

#मुक्तक(मात्रा भार-30) उस बस्ती में घोर उदासी टूटा था कल काल जहाँ, सिसकती साँसों की वीणा आधी रात में आज वहाँ। अग्नि के विकराल रूप में समा गई कई जानें थीं, सपनों का संसार जहाँ था,आज बना शमशान वहाँ। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

जमाना बदल गया है

#जमाना बदल गया है आज बदले जमाने के दस्तूर सारे, ना फूलों की परवाह मसले जाते हैं सारे। ये बदली हवा है , ये बदली फिजा है, न परवाह किसी को,खुद के सिवा है। हवा का वो चलना,मन में फूलों का खिलना, आज भूले सभी हैं,एक दूजे से मिलना। देशभक्ति की तब एक आंधी चली थी, खुद की भक्ति की अब तो हवा बह रही है। प्यार की मन में सुरभि हवा ही थी भरती, आज खोई है प्यारी सी वो अनुभूति। आज काला धुँआ भी हवा में समाया , मन की कलुषता का मैला हवा में उड़ा या। हवा से सिहर उठता है ,मन ये माना, फिर हवा को विषैला,क्यों करता जमाना। तूफान बनके हवा जब है बहती, तोड़ अभिमान सबका रूप अपना दिखाती। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

बाल कविता

#बाल कविता कक्षा में टीचर ने बोला , टेस्ट तुम्हारा कल लूँगी, गर भूल गए पढ़ना कोई, खबर तुम्हारी फिर लूँगी। घर पर चर्चा करी नहीं, मम्मी की भी सुनी नहीं। जबरन माँ ने बस्ता खोला, खेलें आओ बंटू बोला। गोलू भईया खेले खूब पढ़ना तो वो गए थे भूल हुई रात वो थके बिचारे, सो गए देखते सपने प्यारे। स्कूल गए शामत आई, अब टीचर ने क्लास लगाई। जीरो नंबर देख डर गर गए, गोलू जी के तोते उड़ गए। बीमार है माँ गोलू बोला, भण्डार बहानों का खोला, टीचर ने घर पे फोन लगाया उफ्फ.झूठ बोल गोलू पछताया। कभी ना बच्चो बोलो झूठ, माँ -विद्या जाएगी रूठ। जो सच बोले वो मेवा पाए, झूठा हरदम शीश झुकाए। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

हम भी इंसान हैं

#हम भी इंसान हैं आँखें फाड़ कर यूँ ना देखो हमें, हम भी आदम हैं तुम्हारी ही तरह। देखो साँसें भी चलती हैं हमारी, भूख से आग भी लगती है, सर्दी में हड्डियाँ भी गलती हैं। पर..बहुत अंतर है हमारे बीच, तुम सच में मनुष्य कहलाते हो। हम..लावारिस,भिखमंगे,आश्रयहीन!! तुम्हारे पास चार दिवारी है सिर छिपाने को, अन्नभंडार है क्षुब्धा मिटाने को। पर हम तो मजबूत और मजबूर हैं!!! दो दिन बिन खाए सर्दी की रातें और चुभन भरे दिन सड़क पर ही काट लेते हैं भूख लगने पर मिट्टी फाँक लेते हैं, सर्दी में आकाश ही ओढ़ लेते हैं!! सरकारें आती जाती हैं,हमें नहीं भूलतीं, हर किसी की जुबान पर 'हम' ' मजलूमों' का नाम होता है, संसद में हंगामा और... सुविधाओं का बखान होता है, फिर भी ये फुटपाथ ही हमारा बिछौना, और चद्दर आसमान होता है। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर (राजस्थान)

संवेदना

#संवेदना मानवीय #संवेदनाओं का कुआँ तो,कब का सूख गया । फँसकर दिखावे में खुद ही ,मनुष्य खुद से खो गया। जाड़े में ठिठुरते लोगों को देख कर,संवेदनाएँ जागती हैं.. काम पर जाते बच्चों के देख वही संवेदनाएं दम तोड़ती हैं। माँ अपने ही बच्चे को झाड़ियों में फेकती है, जानवर नोचते हैं उसे,ये देख शायद..!!!! वो संवेदनशील माँ आँसू भी बहाती है। सड़क पर घायल को देख संवेदनाएँ जाग उठती हैं, उसे बचाने का प्रयास नहीं करते हम, भीड़ बन खड़े रहते हैं..वो तड़पता है मदद के लिए, दम तोड़ने तक उसका...!! हम साथ देते हैं। वीडियो बनाते हैं..सरकारी मदद ना पहुँचने पर अपना, आक्रोश जताते हैं। तोड़-फोड़ आगजनी कर अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते हैं। 'बलात्कार' शब्द सुनकर,#संवेदनाओं का ज्वार उमड़ता है, हर कोई पीडिता के घर की और निकल पड़ता है। दुःख जताते,नारे लगाते दोषी को पकड़ने के लिए हिंसा पर उतर आते हैं। 'पीड़िता' की संवेदनाओं के लुटेरे उसके साथ 'सेल्फी' खिंचवाकर संवेदनाओं का परिचय देते हैं। माता-पिता को वृद्धाश्रम भेज कर, समाजसेवी बनने की होड़ भी लगती है। आज #संवेदनाएं 'दिल' में नहीं साहब!!!! बाजार म

बाल विवाह एक कुप्रथा

#बाल विवाह एक कुप्रथा बाल विवाह कुप्रथा है आज आपको प्रत्यक्ष देखी वास्तविक घटना के बारे में बताती हूँ। मेरे पिताजी को पेड़-पौधों लगवाने की धुन सवार रहती थी,राजस्थान में कई जगह उन्होंने पौधे लगवाए थे। उनमें एक जगह है लोहागर्ल जो की उदयपुर के आस पास पड़ता है। उस जगह साल भर लोग तीर्थ स्थान के रूप पे आते रहते हैं तथा वहाँ बारहमासी परिक्रमा हुआ करती है। परिक्रमा पहाड़ों के चारों और जहाँ धूप,पानी की कमी आदि में भी लोग परिक्रमा लगाते। माँ और पिताजी ने प्रधानाध्यापक के पद से सेवानिवृत होने के बाद जैसे सारा जीवन परिक्रमा के मार्ग में पेड़ पौधे लगाने को ही समर्पित कर दिया। उन पेड़ पौधों की रखवाली के लिए उन्होंने व्यक्ति भी नियुक्त किए हुए थे..अपनी पेंशन से वो उन्हें तनख्वाह दिया करते,एक बार घर में एक अंकल जो पेड़ों की रखवाली करते थे आए। शांत रहने वाले पिताजी की अचानक गुस्से से भरी आवाज सुनकर हम चौंक गए। अंकल के जाने के बाद पता चला कि वो दो बेटियों के विवाह के लिए पैसे मांगने आए थे जो कि 7 और 10 वर्ष की थीं। पिताजी ने उन्हें उन बच्चियों की शादी ना करने की सख्त हिदायत दी और दूसरे दिन उनके गाँव पहुँच

भारतीय सेना

धैर्य ,साहस ,शौर्य,वीरता,पराक्रम,और गजब का अनुशासन.....सभी शब्द पूरक हैं भारतीय सेना और सेना के हर जवान। के। सेना के धैर्य की परीक्षा लेते हजारों स्कूली बच्चे..प्रश्नों की झड़ी लगाते बच्चे..एक के बाद दूसरा बच्चा हथियारों की जानकारी लेने को उत्सुक...और उतनी ही उत्सुकता से जवाब देते धैर्य में धरा की बराबरी करते सैनिक।उनके माथे पर तनिक भी थकावट और खिन्नता की सिलवटें नहीं दिखीं। छात्रों को हथियारों की जानकारी और दुश्मनों के बारे में बताते-बताते उनकी आँखों में उत्साह,साहस,वीरता की झलक तथा मस्तिष्क पर पराक्रम से उभरता श्वेद वाह्ह अद्भुत दृश्य था वो।जवानों द्वारा रोंगटे खड़े करने वाला शौर्य प्रदर्शन..अद्वितीय था। इन हाथों में भारत का रखा सूत्र देख कर लगा भारत माँ की तरफ उठती आँखों का जवाब देने में इनकी आँखें ही काफी हैं..धन्य है भारतीय सेना,इतनी चौकस,इतनी फुर्तीली अकल्पनीय। भारतीय सेना के साथ बिताया वो समय ..छात्रों के हृदय में भी जोश का संचार कर रहा था..जयहिंद। #सुनीता बिश्नोलिया

समय का सदुपयोग

#समय का सदुपयोग             समय कभी ठहरा नहीं,चाहे रोके राज रंक,              ये मनमौजी नीर सा बहे छोड़ कर पंक। वास्तव में समय नीर की भाँति निरंतर बहता रहता है। बड़े-बड़ों ने समय को बाँधने का प्रयास किया परन्तु बाँध नहीं पाए। प्रकृति की और से मानव को दिया गया अनमोल तोहफा है समय। जहाँ करोड़पति और रोडपति में अंतर नहीं किया जाता। हम मनुष्य आज भी समय के सदुपयोग की महत्ता नहीं समझ पाए हैं हमारी आदत है आज का काम कल पर टालने की क्योंकि कार्य को समय पर पूरा ना करना तो हम भारतीय यदा कदा भारतीय होने की निशानी मान बैठते हैं और इसके लिए अपनी पीठ भी थपथपाते हैं। समय वो वस्तु है जिसे खोकर प्राप्त नहीं किया जा सकता और हम अपने टाल मटोल करने के स्वभाव के कारण अपने लिए कार्य और समस्याओं का जंजाल खड़ा करते जाते हैं और एक दिन उस जाल में फँस कर छटपटाने लगते हैं किन्तु बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं दिखाई देता।             बीज धरा  की गोद में प्यासा समय बिताए              बरखा आने के तलक बीज खाद बन जाय। अथार्त जब पौधे को जरुरत है तब पानी नहीं मिलता तो वो प्यास के कारण अवश्य मर जाएगा,समय से बरसात न होन