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संदेश

बाल कविता

#बाल कविता कक्षा में टीचर ने बोला , टेस्ट तुम्हारा कल लूँगी, गर भूल गए पढ़ना कोई, खबर तुम्हारी फिर लूँगी। घर पर चर्चा करी नहीं, मम्मी की भी सुनी नहीं। जबरन माँ ने बस्ता खोला, खेलें आओ बंटू बोला। गोलू भईया खेले खूब पढ़ना तो वो गए थे भूल हुई रात वो थके बिचारे, सो गए देखते सपने प्यारे। स्कूल गए शामत आई, अब टीचर ने क्लास लगाई। जीरो नंबर देख डर गर गए, गोलू जी के तोते उड़ गए। बीमार है माँ गोलू बोला, भण्डार बहानों का खोला, टीचर ने घर पे फोन लगाया उफ्फ.झूठ बोल गोलू पछताया। कभी ना बच्चो बोलो झूठ, माँ -विद्या जाएगी रूठ। जो सच बोले वो मेवा पाए, झूठा हरदम शीश झुकाए। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

हम भी इंसान हैं

#हम भी इंसान हैं आँखें फाड़ कर यूँ ना देखो हमें, हम भी आदम हैं तुम्हारी ही तरह। देखो साँसें भी चलती हैं हमारी, भूख से आग भी लगती है, सर्दी में हड्डियाँ भी गलती हैं। पर..बहुत अंतर है हमारे बीच, तुम सच में मनुष्य कहलाते हो। हम..लावारिस,भिखमंगे,आश्रयहीन!! तुम्हारे पास चार दिवारी है सिर छिपाने को, अन्नभंडार है क्षुब्धा मिटाने को। पर हम तो मजबूत और मजबूर हैं!!! दो दिन बिन खाए सर्दी की रातें और चुभन भरे दिन सड़क पर ही काट लेते हैं भूख लगने पर मिट्टी फाँक लेते हैं, सर्दी में आकाश ही ओढ़ लेते हैं!! सरकारें आती जाती हैं,हमें नहीं भूलतीं, हर किसी की जुबान पर 'हम' ' मजलूमों' का नाम होता है, संसद में हंगामा और... सुविधाओं का बखान होता है, फिर भी ये फुटपाथ ही हमारा बिछौना, और चद्दर आसमान होता है। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर (राजस्थान)

संवेदना

#संवेदना मानवीय #संवेदनाओं का कुआँ तो,कब का सूख गया । फँसकर दिखावे में खुद ही ,मनुष्य खुद से खो गया। जाड़े में ठिठुरते लोगों को देख कर,संवेदनाएँ जागती हैं.. काम पर जाते बच्चों के देख वही संवेदनाएं दम तोड़ती हैं। माँ अपने ही बच्चे को झाड़ियों में फेकती है, जानवर नोचते हैं उसे,ये देख शायद..!!!! वो संवेदनशील माँ आँसू भी बहाती है। सड़क पर घायल को देख संवेदनाएँ जाग उठती हैं, उसे बचाने का प्रयास नहीं करते हम, भीड़ बन खड़े रहते हैं..वो तड़पता है मदद के लिए, दम तोड़ने तक उसका...!! हम साथ देते हैं। वीडियो बनाते हैं..सरकारी मदद ना पहुँचने पर अपना, आक्रोश जताते हैं। तोड़-फोड़ आगजनी कर अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते हैं। 'बलात्कार' शब्द सुनकर,#संवेदनाओं का ज्वार उमड़ता है, हर कोई पीडिता के घर की और निकल पड़ता है। दुःख जताते,नारे लगाते दोषी को पकड़ने के लिए हिंसा पर उतर आते हैं। 'पीड़िता' की संवेदनाओं के लुटेरे उसके साथ 'सेल्फी' खिंचवाकर संवेदनाओं का परिचय देते हैं। माता-पिता को वृद्धाश्रम भेज कर, समाजसेवी बनने की होड़ भी लगती है। आज #संवेदनाएं 'दिल' में नहीं साहब!!!! बाजार म

बाल विवाह एक कुप्रथा

#बाल विवाह एक कुप्रथा बाल विवाह कुप्रथा है आज आपको प्रत्यक्ष देखी वास्तविक घटना के बारे में बताती हूँ। मेरे पिताजी को पेड़-पौधों लगवाने की धुन सवार रहती थी,राजस्थान में कई जगह उन्होंने पौधे लगवाए थे। उनमें एक जगह है लोहागर्ल जो की उदयपुर के आस पास पड़ता है। उस जगह साल भर लोग तीर्थ स्थान के रूप पे आते रहते हैं तथा वहाँ बारहमासी परिक्रमा हुआ करती है। परिक्रमा पहाड़ों के चारों और जहाँ धूप,पानी की कमी आदि में भी लोग परिक्रमा लगाते। माँ और पिताजी ने प्रधानाध्यापक के पद से सेवानिवृत होने के बाद जैसे सारा जीवन परिक्रमा के मार्ग में पेड़ पौधे लगाने को ही समर्पित कर दिया। उन पेड़ पौधों की रखवाली के लिए उन्होंने व्यक्ति भी नियुक्त किए हुए थे..अपनी पेंशन से वो उन्हें तनख्वाह दिया करते,एक बार घर में एक अंकल जो पेड़ों की रखवाली करते थे आए। शांत रहने वाले पिताजी की अचानक गुस्से से भरी आवाज सुनकर हम चौंक गए। अंकल के जाने के बाद पता चला कि वो दो बेटियों के विवाह के लिए पैसे मांगने आए थे जो कि 7 और 10 वर्ष की थीं। पिताजी ने उन्हें उन बच्चियों की शादी ना करने की सख्त हिदायत दी और दूसरे दिन उनके गाँव पहुँच

भारतीय सेना

धैर्य ,साहस ,शौर्य,वीरता,पराक्रम,और गजब का अनुशासन.....सभी शब्द पूरक हैं भारतीय सेना और सेना के हर जवान। के। सेना के धैर्य की परीक्षा लेते हजारों स्कूली बच्चे..प्रश्नों की झड़ी लगाते बच्चे..एक के बाद दूसरा बच्चा हथियारों की जानकारी लेने को उत्सुक...और उतनी ही उत्सुकता से जवाब देते धैर्य में धरा की बराबरी करते सैनिक।उनके माथे पर तनिक भी थकावट और खिन्नता की सिलवटें नहीं दिखीं। छात्रों को हथियारों की जानकारी और दुश्मनों के बारे में बताते-बताते उनकी आँखों में उत्साह,साहस,वीरता की झलक तथा मस्तिष्क पर पराक्रम से उभरता श्वेद वाह्ह अद्भुत दृश्य था वो।जवानों द्वारा रोंगटे खड़े करने वाला शौर्य प्रदर्शन..अद्वितीय था। इन हाथों में भारत का रखा सूत्र देख कर लगा भारत माँ की तरफ उठती आँखों का जवाब देने में इनकी आँखें ही काफी हैं..धन्य है भारतीय सेना,इतनी चौकस,इतनी फुर्तीली अकल्पनीय। भारतीय सेना के साथ बिताया वो समय ..छात्रों के हृदय में भी जोश का संचार कर रहा था..जयहिंद। #सुनीता बिश्नोलिया

समय का सदुपयोग

#समय का सदुपयोग             समय कभी ठहरा नहीं,चाहे रोके राज रंक,              ये मनमौजी नीर सा बहे छोड़ कर पंक। वास्तव में समय नीर की भाँति निरंतर बहता रहता है। बड़े-बड़ों ने समय को बाँधने का प्रयास किया परन्तु बाँध नहीं पाए। प्रकृति की और से मानव को दिया गया अनमोल तोहफा है समय। जहाँ करोड़पति और रोडपति में अंतर नहीं किया जाता। हम मनुष्य आज भी समय के सदुपयोग की महत्ता नहीं समझ पाए हैं हमारी आदत है आज का काम कल पर टालने की क्योंकि कार्य को समय पर पूरा ना करना तो हम भारतीय यदा कदा भारतीय होने की निशानी मान बैठते हैं और इसके लिए अपनी पीठ भी थपथपाते हैं। समय वो वस्तु है जिसे खोकर प्राप्त नहीं किया जा सकता और हम अपने टाल मटोल करने के स्वभाव के कारण अपने लिए कार्य और समस्याओं का जंजाल खड़ा करते जाते हैं और एक दिन उस जाल में फँस कर छटपटाने लगते हैं किन्तु बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं दिखाई देता।             बीज धरा  की गोद में प्यासा समय बिताए              बरखा आने के तलक बीज खाद बन जाय। अथार्त जब पौधे को जरुरत है तब पानी नहीं मिलता तो वो प्यास के कारण अवश्य मर जाएगा,समय से बरसात न होन

#योग का महत्त्व

                              योग का महत्त्व कर्म योगियों की कर्म स्थली,ज्ञान -दान दाताओं  के ज्ञान से परिपूर्ण,ऋषि-मुनियों की योग स्थली भारत-भूमि। संसार को योग द्वारा रोगों से मुक्त करने का संदेश  देते हुए आज हमने योग का परचम  विश्व में फहरा दिया। योग के प्रभाव से व्याधियों के दूर होने के  कारण ही आज योग को भारत में ही नहीं वरन दुनिया के अधिकतर देशों में अपनाया जा रहा है। आज की तेज रफ़्तार जिंदगी में खुद को स्वस्थ और उर्जावान बनाये रखना बेहद आवश्यक है। इस बात को समझलेने के ही कारण ही लोगों का रुझान व्यायाम और योग के प्रति  बढ़ा है। आप  कम-काजी हो या  विद्यार्थी, उद्यमी हो या फिर   खिलाड़ी, हर किसी की जरुरत  है योग।कुछ देर योग करके अत्यधिक  काम या पढ़ाई के दबाव  के बावजूद भी खुद को तारो ताजा महसूस कर सकते हैं। योग हमारी स्मरण शक्ति ,रचनात्मकता बढ़ाते हुए हमें तनाव मुक्त भी करता है।योग से न केवल व्यक्ति  शारीरिक एवम मानसिक दृष्टि सी मजबूत होता है वरन ये हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता  को भी बढ़ाता है।अतः यदि हमें दिन भर उर्जावान रहना है,रोगों से दूर , ताजगी भरा जीवन  जीना है तो नियमित रूप

महादेवी

#महादेवी वर्मा (महादेवी की कुछ कविताओं के शीर्षक के आधार पर....) प्रतिक्षण प्रतिपल,दीपशिखा सी,जल कर की थी आरती, नव-नेह को रचकर हृदय में,थी अनंत को पुकारती। सपनों के वो जाल बना,चाहती थी मधु-मदिरा का मोल, मधुर-मधुर दीपक सी जली,वो नीर भरी दुःख की बदली। बिन गरजे वो मधु बूंदों सी,बरसाती थी आखर, गूढ़ रहस्य से जीवन में,आशा थी पाने को निर्झर। अनंत पथ में लिखा करती,वो सस्मित सपनो की बातें, मुस्कान भरा ना फूल खिला,थी पीड़ा से भरी सारी रातें। जीवन में उसके मुस्काया कभी, लाली में चुपचाप प्रभात, व्यथा-विरह की मीठी पा,थामा फिर साकी का हाथ। चाहत थी उसकी भी अनोखा,पाने को सपनों का नया संसार, ना मिला कोई था दूर क्षितिज तक,बही आँसू की अविरल धार। राह देख ना कभी थकी,सहती थी मन के हर छाले, उम्मीद से आलि से कहती,क्या प्रिय हैं आने वाले। हृदय को द्रवित करती शब्दों से,ज्यों तरल लोह की धार, करुण-वेदना,विरह-मिलन से, था भरा पड़ा संसार। 'महादेवी' ने देशप्रेम के,फूलों की भी गुंथी माला, मस्तक देने की कहकर हृदयों में भरती थी ज्वाला। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

नारी की उड़ान

अरमानों को पंख लगा                    उड़ान भरती नारी । विश्वास-दीप जला,                  जहां को रोशन करती नारी। तम हरती वो जग का                 और विश्वास भरे डग भरती, लाज चुनरिया को खिसका,                        सम्मान नयन से करती। होड़ नहीं अपनी राहों पर,                      हो निश्चिन्त वो आगे बढती, कमजोर नहीं शक्तिस्वरूपा है                   अधिकारों को वो लड़ती। आज ये निखर गईं ,                      परम्परावादी सोच खुद ही बिखर गई।                अब बदल गया है हर  नारी का कोमल सा व्यक्तित्व,                  लड़ जाती है ज़माने से बचाने 'नारी'अपना अस्तित्व।                    पंछियों सी उड़ान भरती हैं, नर नहीं जहां में राज नारी करती हैं। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

भारत का बदलता परिवेश

#भारत का बदलता परिवेश भारत नहीं बदला...वही हिन्द,वही हिंदुस्तान की पवित्र माटी,वही लोग..किन्तु लग गया है सभी को भोग का रोग,और बदल गई है परिपाटी,सामाजिक मूल्य..सामाजिक सरोकार सभी कुछ तो समाप्त होते जा रहे हैं। आज भी लोगों के हृदय में जोश है,जज्बा है,लगन है ....किन्तु देश के लिए नहीं वरन स्वयं के लिए। सच आत्म केन्द्रित हो गया है आज व्यक्ति। कभी युवाओं ने देशहित प्राणों की बाजी लगाईं थी...अंग्रेजों के टकराए थे....स्वतंत्रता आन्दोलन रूपी हवन में स्वयं समिधाएँ बन कूद गए थे...किन्तु आज स्वार्थ सिद्धि हेतु देश को ही हवन कुण्ड में झोंका जा रहा है। कभी आरक्षण के नाम पर तो कभी जाती धर्म के नाम पर तो कभी अपनी तुच्छ सी मांग के नाम पर देश में तबाही मचाई जाती है।जहाँ महिला को माँ के रूप में पूजा जाता है वहीं उसके नाक काटने तक की बात की जाती है। कुछ लोग देश की सुंदर तस्वीर बना कर विश्व के सामने सुंदर भारत की छवि बनाने में लगे हैं....तो कुछ उस छवि को ख़राब करने में लगे हैं। युवाओं का एक वर्ग तो बात बात में अति उत्साह के कारण ऐसे कार्य कर जाता है कि देश विकास के मार्ग से अवरुद्ध होकर पुन:कुछ महीने पीछ