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संदेश

संस्कार

#संस्कार हर देश की अपनी अलग संस्कृति और संस्कार होते हैं जो व्यक्ति जहाँ रहता है उसे वहीँ की संस्कृति प्रभावित करती है उसका आचरण भी उसी अनुसार होता है। सच ही कहा है बच्चे की प्रथम पाठशाला उसका घर होता है और माँ प्रथम गुरु,और ये बात पूर्णत:सत्य है कि बच्चे पर माँ और परिवार का बहुत प्रभाव पड़ता है। कामकाजी परिवारों में बच्चों को नौकरों के हाथों छोड़ दिया जाता है छोटी उम्र में ही क्रेच या विद्यालय भेज दिया जाता है ऐसे में बच्चे में माँ के अतिरिक्त अन्य लोगों का प्रभाव पड़ता है...और वो सभी समान रूप से संस्कृत हों ये आवश्यक नहीं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहने हेतु अथवा समाज में रहने के लिए उसे कुछ नियमों अर्थात् संस्कारों की आवश्यकता रहती है।जो वो प्राप्त करता है अपने घर से....अपनी संस्कृति से। कुछ लोग संस्कार और संस्कृति को बिल्कुल अलग-अलग मानते हैं,किन्तु मेरा मानना है कि संस्कार और संस्कृति एक दूजे के पूरक हैं क्योंकि मनुष्य में संस्कारों का पोषण उसकी संकृति से ही पोषित होगा और स्वयं द्वारा ग्रहण किए गए संस्कारों को हीअपने स्वभाव के अनुसार वो आने वाली पीढ़ी में संचरित करेगा.

पत्र संतोष मैम के नाम

#तिथि-20/2/18 आदरणीया,संतोष मैम,         सादर चरण-स्पर्श,   मैंम मैं यहाँ कुशलता पूर्वक रहते हुए ईश्वर से आपकी कुशलता की मंगल कामना करती हूँ। मैंम मुझे आपके द्वारा हम छात्रों पढ़ाने-समझाने और प्यार करने का अन्दाज आज भी याद है...आज भी आपकी मीठी बोली कानों में गूँजती है,गूंजता है आपका हर प्रेरणादायी  शब्द जो आप कक्षा में बोला करतीं थी और प्रार्थना सभा में आपको सुन कर दिन बन जाया करता था। मैम आपका हिंदी के प्रति लगाव और छात्रों में हिंदी भाषा के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना और मुझे अपने हर कार्य का दायित्व संभला देना,मेरी कविताओं की प्रशंसा करना,नित्य लेखन हेतु प्रेरित करना ...जैसे कल ही की बात है।मैम आप मात्र शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं वरन हर क्षेत्र में निपुण थीं, जैसे-अंतर्विद्यालय स्तर पर गायन,वाद-विवाद,भाषण,नाटक आदि हेतु हमपर जितनी  मेहनत करतीं ...शायद उसी का प्रभाव मुझ पर पड़ा है जो मैं भी अपने छात्रों पर आप ही की भांति प्रभाव छोड़ने का प्रयास करती हूँ। मैम मुझे अच्छी तरह याद है..आपकी मेहनत,लगन और निष्ठा देखकर प्रधानाचार्य श्रीमती तारावती भादू ने प्रार्थना सभा में कहा था कि आप ब

धरा

#धरा धैर्य धरा का टूट रहा है,देख हमारे धंधे, स्वयं नष्ट करते वसुधा,तैयार कर रहे फंदे। माँ वसुधा पर फ़ैल रहा है,आज धुँआ विषैला, हाय!तड़पती माँ का तन भी हुआ बड़ा मटमैला। शहरों का विस्तार हुआ और सिमट गए हैं ग्राम, कंक्रीट के जंगल कहो धरा पे,क्यों हो गए हैं आम। आभूषण वृक्षों के माँ के,मानव ना तुम नोचो, नूतन वृक्ष लगा धरती को ,स्नेह-सुधा से सींचो। धरती का क्यों ह्रदय ,चीरते संसाधन पाने को, क्यों पर्वत का अस्तित्व मिटाते बन कर के अनजाने। देखो माँ की कृश काया,आँखों में अश्रु का सागर, फिर भी दे उपहार मनुज को,भरती लालच का गागर। पार कर गई पराकाष्ठा गर धरती के सहने की, अश्रु धार से नष्ट करेगी,जाति मनुज अभिमानी की। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

धोखा

#धोखा कोई तो बताए धोखा कहाँ नहीं होता, परम्परा पुरानी है वर्षों से चली आ रही है हर तरफ .छल,कपट और धोखा है। सब जानते हैं धोखे का परिणाम बुरा ही होता है, कैकई ने धोखे से ऐसा वचन लिया, फिर खुद ही वैधव्य का जहर पिया। रावण ने धोखे से सीता का हरण किया, इसी धोखे ने इसके पुत्रों के प्राणों का वरण किया। राम ने भी सीता को धोखा ही तो दिया था, गर्भवती को घर से निष्कासित जो कर दिया था। आज भी धोखेबाजों से भरी ये दुनिया है कदम-कदम पर धोखा और दगा देती ये दुनिया है। रिश्ते नाते भी भेंट चढ़ गए धोखेबाजों के, अपनों के धोखे के अपरिचित है मिजाजों से। #सुनीता बिश्नोलिया © #जयपुर

#अनाथ

#अनाथ माँ..माँ कहता हुआ बिल्लू जल्दी से घर में घुस गया।माँ ने उसके हाथ में कुत्ते का पिल्ला देखा तो वो चिल्लाई ..फिर ले आए तुम कुत्ता.. मैं इसे नहीं रखने दूँगी चलो छोड़ कर आओ इसे जहाँ से लाए हो। बिल्लू ने बड़ी मिन्नत की माँ इसे भूख लगी है खाना तो खिला दो।माँ का निर्मल मन पिघल गया..वो फटाफट रसोई में जाकर दूध लाई और उसे पिलाने की कोशिश करने लगी पर वो पिल्ला सहमा हुआ था..कूं..कूं कर रहा था..इस पर माँ से रहा ना गया उसने स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरा तो पिल्ला भी यह अपनत्व पाकर निहाल हो गया और चीभ से दूध चाटने लगा। दूध पिला कर माँ ने बिल्लू से कहा जाओ अब इसे छोड़ आओ इसकी माँ इसे ढूंढ रही होगी वो इसे ढूंढ़ते हुए यहाँ आ जाएगी..बिल्लू बोला नहीं माँ वो कभी नहीं आएगी,इसकी माँ को तो किसी गाड़ी ने टक्कर मार दी जिससे वो मर गई ये तो उसके पास बैठकर रो रहा था और बच्चे इसे तंग कर रहे थे इसलिए मैं इसे अपने साथ ले आया । माँ मेरी तरह इसकी भी माँ बन जाओ ना ..ये भी मेरी तरह अनाथ.. इतना सुनते ही माँ ने बिल्लू के मुँह पर हाथ रख दिया और बोली कौन है अनाथ ये तो अब यहीं रहेगा..तुम्हारे साथ। बिल्लू को भी दो वर्ष पूर्

क्या महिलाओं में साक्षरता बढ़ी है

#क्या महिलाओं में साक्षरता बढ़ी है अरस्तू ने कहा था नारी की उन्नति तथा अवनति पर ही राष्ट्र की उन्नति निर्भर करती है। बर्नाड शा का कहना है की किसी व्यक्ति का चरित्र कैसा है,यह उसकी माता को देखकर साफ़ बताया जा सकता है। सुशिक्षित नारी समाज में फैले दुराचार,रुढिवाद और अनाचार को नष्ट करने में सहायक हो सकती है,और इसका प्रमाण हम प्राचीन कल से ही जीजाबाई..रत्नावली आदि के रूप में प्राप्त कर चुके हैं। किन्तु प्रश्न यह है कि क्या महिलाओं में साक्षरता बढ़ी है...अवश्य बढ़ी है। हालांकि इसका प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले बहुत कम है। प्राचीन काल में स्त्रियों को भी पुरुषों के समान ही शिक्षा दी जाती थी.....गार्गी,लीलावती,अनुसूया आदि विदुषियों को कौन नहीं जानता। आचार्य मंडन मिश्र की पत्नी ने जगत्गुरु शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में बुरी तरह हराया। किन्तु समय -समय पर विदेशी आक्रमण होते रहने के कारण हमारे देश का शैक्षणिक विकास रुक गया... महिलाओं को घरों में कैद होकर अशिक्षा के घूंघट में विवश होकर रहना पड़ा। समाज के कुछ पुरातन पंथियों की स्त्री-शिक्षा की विरोधी सोच के कारण....स्त्री शिक्षा में पिछड़ गई...

#अपराधबोध

#अपराधबोध अपराध बोध उसी व्यक्ति को होता है जिसने अनजाने में अपराध किया हो। जो व्यक्ति जान बूझकर अपराध करता है वो वो मात्र अपराध बोध का भी दिखवा ही करता है। सत्य कह रही हूँ...आप ही बताइए क्या आपने कोई ऐसा व्यक्ति देखा है जो अनजाने किसी जानवर को मारता है और फिर कहता है कि मर गया इसलिए इसे खा ही लेता हूँ..वो हम पर और पर्यावरण पर अहसान जताता है कि पर्यावरण दूषित ना हो इसलिए खा लेना ही ठीक है। घर,परिवार,पड़ोस,समाज,गाँव,शहर ,देश आदि के मध्य जमीन के पीछे लड़ाई अथवा युद्ध हो जाता है..अपराधबोध के नाम पर मात्र अफ़सोस काश सामने वाला मेरी वाणी को हवा ना देता तो लड़ाई और युद्ध होने से बच जाता..किन्तु युद्ध तो हो गया जो विनाश होना था हो गया..बिना सोचे समझे आवेश में इतना बड़ा कदम नहीं उठाया जाता। क्षमा कीजिएअगर एक बलात्कारी,व्यभिचारी कुकृत्य करने के बाद अपराध बोध से ग्रसित होता है तो उसका अपराध अक्षम्य है,क्योंकि काम की ज्वाला उसके अपने हृदय में उत्पन्न हुईं थी ना कि किसी ने उकसाया,अत: ये महाअपराध है..अपराधबोध करने पर क्षमा का तो प्रश्न ही नहीं उठता। धर्मों के नाम पर दंगे,जाति के नाम पर अनुचित मांगे त

वसुधैव कुटुंबकम्

# वसुधैव कटुम्बकम     (गीत) वसुधा कुटुंब हमारा है और हम हैं वसुधा वासी, मिलजुल कर जो रहें धरती माँ हम पर स्नेह लुटाती। छोटे से परिवार में रहते,हिल-मिल जन क्यों सारे, क्यों लगते हैं कहो वो,एक-दूजे को खुद से प्यारे। अपना छोटा सा ही घर क्यों लगता स्वर्ग से सुंदर, क्यों खुशियों के बजते नित,गान भी घर के अन्दर। वसुधा कुटुंब....... एक दूजे के कष्ट में क्यों हर मुख पर दुःख छा जाता, कहो क्यों एक रूठे तो दूजा ,भाई उसे मनात। वैसे ही माँ वसुधा भी तो,घर है हमारा अपना, अखंड और सुंदर धरती का,सबका ही हो सपना। वसुधा कुटुंब... एक धरा है एक है अंबर,रहते चाहे रहते लोग अनेक, सीमाओं के नाम से बंट,क्यों बढ़ा आज इतना मतभेद। मनुज धरा का हर कहता,वसुधा को अपनी माँ, परिवार एक फिर हुआ स्वत: ही सबकी धरिणी माँ। वसुधा कुटुंब..... रक्त का वर्ण भी हर प्राणी का है होता एक सामान, ना हो कोई तुच्छ नजर में और ना कोई महान। जाति-पाति का भेद मध्य ना आए बंधु-बांधव के, वसुधा को कुटुंब समझ,दुःख बाँचे हर मानव के। वसुधा कुटुंब... म्यान से ना तलवार निकालें, देश-धर्म के नाम पर, प्रणों का उत्सर्ग करें हम ,मानवता

कसूर

कसूर (#मात्रा भार-26) गरीब की गरीबी ही उसका कसूर बन गई, चिथड़ों में लिपटी काया ही नासूर बन गई, घूरती निगाहों से बदन छुपाए तो कैसे, आज फिर कोई उन निगाहों की भेंट चढ़ गया। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

आग से सब कुछ स्वाहा होने के बाद....

#मुक्तक(मात्रा भार-30) उस बस्ती में घोर उदासी टूटा था कल काल जहाँ, सिसकती साँसों की वीणा आधी रात में आज वहाँ। अग्नि के विकराल रूप में समा गई कई जानें थीं, सपनों का संसार जहाँ था,आज बना शमशान वहाँ। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

जमाना बदल गया है

#जमाना बदल गया है आज बदले जमाने के दस्तूर सारे, ना फूलों की परवाह मसले जाते हैं सारे। ये बदली हवा है , ये बदली फिजा है, न परवाह किसी को,खुद के सिवा है। हवा का वो चलना,मन में फूलों का खिलना, आज भूले सभी हैं,एक दूजे से मिलना। देशभक्ति की तब एक आंधी चली थी, खुद की भक्ति की अब तो हवा बह रही है। प्यार की मन में सुरभि हवा ही थी भरती, आज खोई है प्यारी सी वो अनुभूति। आज काला धुँआ भी हवा में समाया , मन की कलुषता का मैला हवा में उड़ा या। हवा से सिहर उठता है ,मन ये माना, फिर हवा को विषैला,क्यों करता जमाना। तूफान बनके हवा जब है बहती, तोड़ अभिमान सबका रूप अपना दिखाती। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर