#अनाथ
माँ..माँ कहता हुआ बिल्लू जल्दी से घर में घुस गया।माँ ने उसके हाथ में कुत्ते का पिल्ला देखा तो वो चिल्लाई ..फिर ले आए तुम कुत्ता.. मैं इसे नहीं रखने दूँगी चलो छोड़ कर आओ इसे जहाँ से लाए हो।
बिल्लू ने बड़ी मिन्नत की माँ इसे भूख लगी है खाना तो खिला दो।माँ का निर्मल मन पिघल गया..वो फटाफट रसोई में जाकर दूध लाई और उसे पिलाने की कोशिश करने लगी पर वो पिल्ला सहमा हुआ था..कूं..कूं कर रहा था..इस पर माँ से रहा ना गया उसने स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरा तो पिल्ला भी यह अपनत्व पाकर निहाल हो गया और चीभ से दूध चाटने लगा।
दूध पिला कर माँ ने बिल्लू से कहा जाओ अब इसे छोड़ आओ इसकी माँ इसे ढूंढ रही होगी वो इसे ढूंढ़ते हुए यहाँ आ जाएगी..बिल्लू बोला नहीं माँ वो कभी नहीं आएगी,इसकी माँ को तो किसी गाड़ी ने टक्कर मार दी जिससे वो मर गई ये तो उसके पास बैठकर रो रहा था और बच्चे इसे तंग कर रहे थे इसलिए मैं इसे अपने साथ ले आया । माँ मेरी तरह इसकी भी माँ बन जाओ ना ..ये भी मेरी तरह अनाथ..
इतना सुनते ही माँ ने बिल्लू के मुँह पर हाथ रख दिया और बोली कौन है अनाथ ये तो अब यहीं रहेगा..तुम्हारे साथ। बिल्लू को भी दो वर्ष पूर्व की घटना याद आ गई जब माँ-पापा की ट्रेन दुर्घटना में मौत के बाद रमा ही उस अनाथ की माँ बन गई ।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर (राजस्थान)
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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