#हास्य रस #रसिक इंद्र पहन गरारा नारदजी ने नृत्य सभा में कीन्हा, डोल गया दिल इंद्र का एक देख दुपट्टा झीना। नारद जी भी लजा -लजा कर घूँघट में मुस्काते, दिखा इंद्र को नई अदाएँ अपनी और रिझाते। थिरक रही नारद की काया,ज्यों नखरेली नार, देख हंसीं ठुमके नारद के इंद्र को आया प्यार। पीछे-पीछे डोल रहे मय की माया में खोय रहे, इंद्र छिछोरे हुए अप्सरा जान के आपा खोय रहे। इंद्राणी आ गई सभा में लेकर रंभा और शंभा, हुई शर्म से पानी-पानी देख के पति निकम्मा। झट-पट खींचा घूंघट नारद का,और देख मुस्काई, वाह्ह नारद बहुत खूब क्या लाज न तुमको आई। देख मिलीभगत दोनों की इंद्र हुए बैचन, लुटी इज्जत भरे बाजार न मिले किसी से नैन। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर
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