#लघुकथा-जीजी की ननद
हर तरफ रोने की आवाज...जया भी अपने होश खो बैठी थी...वो दीदी को चुप नहीं करवा पा रही थी बल्कि वो और उनका परिवार ही जया को चुप करवा रहा था...। जया अपनी जीजी की ननद की लाश पर लिपट गई उसे उनकी अप्रत्याशित मृत्यु पर विश्वास नहीं हो रहा था...।हमउम्र होने के कारण दोनों में पक्की दोस्ती थी..
जया की आँखों में पुराणी यादें नाचने लगी..जब भी दोनों मिलती बहुत मस्ती करती.. जया उनकी मौत का जिम्मेदार खुद को मान रही थी..उसे याद आया कि दीदी की ननद के बलिदान के कारण ही उसे वरुण जैसे जीवन साथी मिले.. उन्होंने अपने मेरी ख़ुशी के लिए अपने प्रेम का त्याग किया..और खुद ने ऐसे व्यक्ति से शादी की जिसके कारण आज उनके साथ ये हादसा हुआ...
जया का रो-रो कर बुरा हाल था....
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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