स्वावलंबन
शक्ति का अहसास स्वयं की, करते मनुज स्वावलंबी है।
कर्त्तव्य के पथ पर अविरल बढ़ते,सदा मनुज स्वावलंबी है।
नहीं किसी का मुँह तकते और,साहस रखते वो बढ़ने का।
उद्देश्य को वो प्रवृत्त रहते, दृढ़ रहते मनुज स्वावलंबी है।
हैं बाधाओं से वो लड़ते ,खुद ईश्वर उनके साथ सदा।
आत्मविश्वास से अडिग सदा,रहते मनुज स्वावलंबी है।
चरण पखारे लक्ष्मी माँ,सफलता उनको चुनती है,
आत्मनिर्भर आत्मविश्वासी,होता जो मनुज स्वावलंबी है।
राष्ट्र का बल है राष्ट्र का गौरव,द्वार उन्नति का खोलें ,
भुजाओं की ताकत अपनी,दिखलाता मनुज स्वावलंबी है।
अंतर्निहित शक्तियों को,पहचान मनुज जो जाते हैं,
कोष कुबेर का कर्मठ जन, पाते वो मनुज स्वावलंबी हैं।।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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