#विदाई
बाबुल अपनी लाडो को ना,कर देना कभी पराया,
विदाई की वेला में ना जाने,क्यों भाव ये मन में आया।
चंचल चिड़िया आँगन की, मैं पंख पसार रही हूँ,
ना बने कभी पिंजरा 'डोली',इसलिए निहार रही हूँ।
माँ की कोख का मोती पिया,तेरे घर में जान सजेगा,
निर्मल-स्नेह का सागर अब,मुझे तेरे ही घर में मिलेगा।
सौरभ से युक्त खिला 'सुमन' ,बाबुल ने तुमको सौंपा,
आज शाख से अलग हो चला,बन कंटक ना देना धोखा।
गाँठ बाँध कर स्नेह की,तेरे संग ख़ुशी-ख़ुशी आऊँगी,
तुम भी वचन के पक्के रहना,मैं भी हर वचन निभाऊँगी।
नीर भरे नयनों में सपने,नव-जीवन के हैं संजोये,
भाई भी मेरे कर के विदा,किस और जान हैं खोये।
आँखों में ले दर्द के बादल,वो मेरे पास में घूमा करते,
कहाँ छिप गए बदरा वो जो,मस्तक चूमा करते थे।
मैं बाबुल के बागों में , बन कोयल थी कूका करती,
उन बागों से निकल आज,तेरे संग मैं हूँ डग भरती।
बदल गया है वेश मेरा, हाँ..मेरा बदलेगा परिवेश,
मुझको भुला ना देना, ओ! मेरे..प्यारे बाबुल के देश।
#सुनीता बिश्नोलिया
mast hai mam vidai aahaa
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