#मुक्तक
(मात्रा भार-30)
जो अपने हाथ के छाले,अपनी किस्मत समझता है,
इन्हीं हाथों से जगति का,वो सुंदर गान लिखता है,
खड़े पर्वत भी राहों से,हटते हैं देखकर उसको,।
उसी दिलदार फक्कड़ को,जमाना मजदूर कहता है।
2.वो पत्थर तोड़कर अपनी सोई किस्मत जगाता है,
पीठ पे बोझा ढो कर भी,गीत खुशियों के गाता है,
नहीं डरता ज़माने से,नहीं डरता वो मेहनत से,
अपने हाथों से राहों के पर्वतों को गिराता है।
3.प्यार गहरा उमड़ता है,पर जताया वो नहीं करता,
ख़ुशी और गम में भी आँसू बहाया वो नहीं करता।
#पिता हस्ती ही है ऐसी बराबर ना कोई जिसके,
अपनी संतान के सपने पूरे जी जान से करता ।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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