#सपने सच होते हैं
सुना मैंने ज़माने से कि सपने सच नहीं होते,
जमाना कहता है क्यों ऐसा,कोई अपने नहीं होते।
जरा आओ मेरे साथी कि आँखें फाड़ के देखो,
ये बादल घर में आ बैठे, जमीं पे जो नहीं होते।
तपती है रेत धोरों में जलती अंगार सी साथी,
प्रहरी सीमा पे हरदम ही होते या नहीं होते।
दो मीठे बोल ऐ! साथी जरा दुश्मन को भी कह दे,
उसकी आँख में आँसू होते या नहीं होते।
दिल.. से अगर मानो, अपना साथी किसी को तुम,
तेरी मुश्किल में हरदम वो, साथ होते या नहीं होते।
अपने हाथों को हरदम तुम,सच्चा साथी समझ लेना,
तेरी मेहनत से फिर सपने,सच होते या नहीं होते।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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