#दोहे-बरसात
धरती का भी जल रहा,कोमल-कंचन गात,
बदरा-बरसो आन के,शीतल हो धरती मात।
हलवाहे खेतों चले,रिमझिम बरखा होय,
बरखा की बौछार से,मनवा खिल-खिल जाय।
सोया नन्हा बीज था,सूखे खेतों माय,
बारिश अंग लगाय के, रहा बीज मुस्काय।
मयुरा कूके बाग में,देख घटा घनघोर,
बरसी बूंदे प्रेम की, मयुरा हुआ विभोर।
छलक उठा दिल बांध का,बरसे जो घन श्याम,
हरियाली वसुधा हुई,बारिश का अंजाम।
#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर
पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '- सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर ' सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | सूरमा नहीं विचलत होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते | विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं | मुँह से कभी ना उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं | जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग- निरत नित रहते हैं | शूलों का मूल नसाने हैं , बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं | है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में? खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़ | मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है | गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर मेहंदी में जैसे लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो | बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है | कवि परिचय - #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर
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